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    Home»Historical Persons»आखिर क्या हुआ था इतिहास में, जानिए रानी पद्मावती की पूरी कहानी
    rani padmavati history in hindi1

    आखिर क्या हुआ था इतिहास में, जानिए रानी पद्मावती की पूरी कहानी

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    By Ravi Kumar on Jan 19, 2018 Historical Persons

    भारत की भूमि जितनी महात्मा गांधी, भगत सिंह जैसे वीरपुरुषों के लिए जानी जाती है, उतनी ये धरती रानी लक्ष्मी बाई, सरोजनी नायडू जैसे वीरंगनायों के लिए भी जानी जाती है। इन्हीं में एक नाम प्रमुख है-

    रानी पद्मावती, Rani Padmavati ya Padmavat ya Padmini 

    रानी पद्मावती इतनी विरंगना थी कि जिनके लिए ये सुंदर लाइने कही जाती है –

    “वीरांगना जिसने अपनी शान के लिए जान दे दी

    वीरांगना जो दिल्ली के सुल्तान के सामने नहीं झुकी।”

    अनुक्रम

    • Rani Padmavati History
      • Childhood & Parents 
      • Marriage 
      • जौहर की कहानी का प्रारंभ (अपने ही सेवक का छल)
      • खिलजी का छल 
      • वीरंगनायों का जौहर 

    Rani Padmavati Historyrani padmavati history in hindi1

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    Childhood & Parents 

    ऐसी वीरांगना रानी पद्मावती का जन्म 12-13 वीं सदी में सिंघल प्रांत (श्रीलंका) में हुआ था। जहां उनके पिता गंधर्वसेन वहाँ के राजा थे और उनकी माँ चंपावती रानी थी। रानी पद्मावती का बचपन में पद्मिनी नाम था। जिन्हें बाद में Padmavat के नाम से भी जाना गया। वे बाल्यकाल से ही बहुत सुंदर थी। वे अपने पिता की तरह निडर और युद्ध कौशल सीखने में रुचि रखती थी।

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    Marriage 

    जब पद्मिनी युवा हुई तो उनके पिता ने उनकी शादी के लिए स्वयंवर प्रतियोगिता करवाया। जिसमें भारत देश के राज्यों के कई राजा आए। जिसमें विवाहित राजा रावल रत्न सिंह भी आए, जो वीर भूमि चित्तोडगढ़ के राजा थे।

    वे अपनी चतुराई और वीरता से इस प्रतियोगिता में विजयी रहे। तब उनकी शादी पद्मिनी के साथ धूम-धाम के साथ हो गई। फिर राजा रावल सिंह अपनी दूसरी रानी पद्मिनी के साथ अपने राज्य चले गए।

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    जौहर की कहानी का प्रारंभ (अपने ही सेवक का छल)

    अब उनका शासन-प्रशासन बड़े खुशी के साथ चल रहा था। उनके राज्य में राघव चेतन नाम का बहुत फेमस संगीतकार था। जिसके बेहतरीन कला-कौशल के कारण राजा उन्हे खूब मानते थे।

    पर संगीतकार राघव चेतन संगीत के अलावा जादू-टोना में भी रुचि रखता था। जिसका वह आए दिन प्रयोग करता रहता था।

    जिसकी खबर राजा को लगी तो उन्होंने राघव चेतन को काला मुंह कराके देश निकाला का आदेश दे दिया।

    अपने अपमान को राघव सहन नहीं सका और मन ही मन में राजा रावल सिंह के विनाश को लेकर प्रतिज्ञा कर ली।

    इसलिए उसने उस वक्त के खूंखार और अत्याचारी राजा अलाउद्दीन खिलजी से मिलने का मन बना लिया। तब वह दिल्ली चला गया

    वहाँ जाकर, वो खिलजी से चित्तोडगढ़ की धन-संपदा, सैन्य-शक्ति और रानी पद्मावती की खूबसूरती के बारे में बताया। जिससे सुल्तान बहुत मोहित हुआ और रानी पद्मावती की एक दीदार करने का मन बना लिया।

    तब खिलजी अपनी पूरी सेना के साथ चित्तोडगढ़ आ गया। वहाँ किले के सामने डेरा जमा लिया। लेकिन महीनों बिताने के बाद वो किले में नहीं घुस नहीं सका, क्योंकि किले को इस तरह बनाया गया कि जरूरत की सभी समान अंदर ही मिले।

    तब खिलजी निराश होकर राजा रावल सिंह एक पत्र लिखा, “हम एक बार रानी पद्मवाती का दीदार करना चाहते है। जिसके बाद हम लौट जाएंगे। यदि ऐसा नहीं हुआ तो खून की नदियां बहेगी।“

    इस पत्र को पाकर राजा रावल सिंह और रानी पद्मावती बहुत गुस्से हुए, पर जनता की भलाई को ध्यान में रानी पद्मावती राजी हो गई। पर एक शर्त रखी कि सुल्तान उन्हें एक आईने के माध्यम से देख सकता है।

    इसकी सूचना सुल्तान को दी गई। सुल्तान राजी हो गया। किले में एक बड़ा सा आईना लगाया। रानी पद्मावती सीढ़ियों पर आई। तब सुल्तान ने उन्हें आईने में दीदार किया और महल से जाने लगा।

    तब राजा रावल सिंह से अथिति देवों भव: की परंपरा निभाते हुये सुल्तान को किले के गेट तक छोड़ने गए।

    खिलजी का छल 

    पर उन्हें पता ही नहीं चला कि वे कब किले से बाहर पहाड़ियों में आ गए। तब सुल्तान ने धोखे से उन्हें बंदी बना लिया।

    तब सुल्तान ने रानी पद्मावती को पैगाम भिजवाया कि अगर राजा की सलामती चाहती है तो रानी पद्मावती सुल्तान के पास आ जाए।

    तब रानी बहुत चिंतित हुई, पर धैर्य के साथ काम ली। उन्होंने मायके में अपने सबसे भरोसेमंद और बुद्धिमान व्यक्ति कोरा को बुलावा भेजी।

    कोरा अपने भतीजे बादल सिंह के साथ चित्तोडगढ़ आकर राजा रावल सिंह को छुड़ाने का रणनीति बनाया।

    शाम को किले से 100 पालकियां को खिलजी के डेरे की ओर भेजा गया और खिलजी को पैगाम दिया गया कि इनमें रानी की सहेलियाँ है, जो राजा रावल सिंह से अंतिम बार मिलना चाहती है।

    रानी की पालकी को सीधे राजा रत्न सिंह के तम्बू में भेजा गया। जहां राजा रत्न सिंह क्षमा मांगने लगते है। तभी अंदर से आवाज आई, मैं कोरा का भतीजा बादल हूँ। तब वो राजा को आजाद कर देता है।

    वीरंगनायों का जौहर 

    इस बीच खिलजी को इस बारे में पता चलता है, तब तक राजा किला पहुँच चुके होते है। पर अब आमने-सामने की सीधी लड़ाई छिड़ गई। जिसमें राजा रावल सिंह अपनी सेना के साथ बहादुरी के साथ लड़ते है।

    पर वे भली भांति जानते थे, सुल्तान के विशाल सेना के आगे ज्यादा देर टीक ना पाएंगे। इस बार को रानी भी अच्छी तरह से जानती थी। इसलिए किले में बड़ा सा चिता बनाया गया। जिसपर रानी सहित किले के सभी महिलायों ने जौहर कर ली।

    जब खिलजी युद्ध जीता और महल में प्रवेश किया तो उसे वहाँ कुछ भी नहीं मिला।

    ऐसी थी रानी पद्मावती जिसने अपने आन-बान शान के लिए जान तक दे दी।

    This story is based on the poem of Malik Muhammad Jayasi in 1540 CE.

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