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    Home»Sports Persons»कैसे बनी एक जिद के कारण एक मजदूर घर की लड़की विश्व बॉक्सिंग चैम्पियन
    mary kom
    Mary Kom, Image Credit:smilesofindia.com

    कैसे बनी एक जिद के कारण एक मजदूर घर की लड़की विश्व बॉक्सिंग चैम्पियन

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    By Ravi Kumar on Feb 25, 2016 Sports Persons

    ए माँ मुझे सपने दे, तू मेरी हौसलों की चिंता ना कर। मणिपुर की धरती से यहीं कुछ कहती थी, Mary Kom, दुबली-पतली सी गाँव की लड़की, जो बचपन में खेती और खेल के सिवाय कुछ नहीं जानती थी। पर उसमें एक चीज थी “सपना जीने की अद्भुत क्षमता”  यहीं कारण था कि वो कितना भी गरीब थी, पर क्षमता और नाम से अमीर थी, क्योंकि Mary Kom का असली नाम Mangte Chungneijang है, जिसका अर्थ है “समृद्धशाली”। 

    जब वह Boxing में कैरियर बना रही थी, तो नाम के उच्चारण को सरल बनाने के लिए मैरी कॉम नाम रख ली। आइये इस Hindi Biography में उन्हें बेहद करीब से जानते हैं….

    mary kom

    Mary Kom’s Hindi Biography

    Mary Kom का Childhood

    मेरी कॉम का जन्म कांगथेई, मणिपुर के एक गरीब परिवार में हुआ। माँ शॉल बुनकर और पिता मजदूर थे। वे अपनी चार भाई-बहनो में सबसे बड़ी थी। इस कारण खेतों में काम करते हुए भाई-बहनों का भी ख्याल रखना पड़ता था।

    उनकी Early Education Loktak Christian Model High School  (Class 6 तक)  और St. Xavier Catholic School (Class-8 तक) में हुई। और क्लास 9-10 की पढ़ाई के लिए इम्फ़ाल की आदिमजाति हाई स्कूल में चली गई, पर वहाँ मैट्रिक की परीक्षा पास न कर सकी।

    फिर उन्होंने ने दुबारा प्रयास भी नहीं किया और आगे की पढ़ाई National Institute of Open Schooling (Distance Education Center) से और Graduation Churachandpur College से पूरा की।

    (Quick Fact) Mary Kom born on March 1, 1983

     

    Boxer Mary Kom की शुरुआत

    गाँव की गौरी होते हुए भी उन्हें बचपन से ही खेलों में बहुत रुचि थी। वह क्रिकेट, फुटबॉल, हॉकी आदि खेलती थी। लेकिन surprisingly  वो बॉक्सिंग नहीं करती थी।

    1997 के आसपास वे मार्शल आर्ट सीखना चाहती थी। पर 1998 में Asian Games में मणिपुर के बॉक्सर डिंगको सिंह ने गोल्ड मैडल जीत कर पूरे भारतवाशियों को गौरव का पल महसूस करने का मौका दिया। यहीं से वे बॉक्सिंग के लिए Inspired हो गई।

    अगले ही दिन वे कोच एम.नर्जित सिंह के पास गई और बॉक्सिंग सिखाने के लिए request करने लगी। पर पहले दिन कोच ने उसे माना कर दिया।

    पर वह हार नहीं मानी और दूसरे दिन भी कोच के पास गई। 16 वर्षीय पतली सी लड़की की जिद्दीपन को देखकर आखिरकार कोच को मानना पड़ा।

    पर कोच ने उसे कहा “तुम ज्यादा दुबली-पतली हो, ज्यादा दिन तक टिक नहीं पायोंगी”

    पर उसने इसे Challenge के रूप में ली। वह अकेली इंफाल में रहती और खुद का खाना बनाती थी।

    स्कूल में रोज पढ़ने जाती थी और सुबह-शाम भारतीय खेल प्राधिकरण के सेंटर में जी-तोड़ प्रैक्टिस करती थी।

    (Quick Fact) Mary Kom’s Nickname – Magnificent Mary

     

    Mary Kom का Boxing Career

    घर से उसे 50 रुपये महीना मिलता था। ग्लब्स खरीदने के लिए 350 रुपये नहीं थे। पर कई महीनों के बचत से ग्लब्स खरीदी और फटेहाल जूते पहनकर 2000 में पहला स्टेट लेवल टूर्नामेंट जीती।

    पहली बार अखबार में फोटो छपा। पिता ने खेलने से रोका। पर नहीं रुकी। डटी रही अपनी फौलादी इरादों पर। पासपोर्ट चोरी हुई, कोच की गलत निर्णयों का शिकार हुई, कभी-कभी रूढ़िवादी लोगों का अपमान भी सहना पड़ा।

    पर वह जो एक बार ठान लेती थी, तो उसे पूरा करके ही दम लेती थी। यही कारण है कि 5 बार National Championships जीतने वाली एक मात्र Woman Boxer हैं।

    2001-06 के बीच खेले गए तीनों AIBA World Boxing Championships जीत चुकी हैं।

    2008 में जहां उसने Asian Woman Boxing Championship में सिल्वर जीती, वहीं चाइना में खेले जा रहे है AIBA World Boxing Championship को लगातार चार बार जीती।

    इसके बाद तो वे आगे-आगे और मैडल्स उनके पीछे-पीछे चले जा रहे थे। इसी क्रम में 2009 में वियतनाम में आयोजित Asian Indoor Games में गोल्ड से ही मानी।

    2008 की तरह 2010 में भी उन्हें डबल धमाका करने का मौका मिला। एक धमाका एशियन गेम्स में 51 किलो के केटेगरी में खेलते हुए ब्रोंज मेडल जीतकर की। दुसरा धमाका लगातार पाँच बार AIBA Woman’s World Boxing Championship जीतकर की।

     

    Mary Kom in London Olympics

    “जले को राख़ कहते है, खून को पसीना कहते है,

    हारकर जो जीत जाए उसे मैरी कॉम कहते है।”

    जी हाँ, उसने बेहद अंतिम क्षणों में London Olympics 2012के लिए क्वालिफाइ की और पहली बार खेल रही ओलिंपिक्स के सेमीफाइनल में जा पहुंची, पर UK के एडम निकोला से 6-11 से हारकर भी भारत के लिए मैडल पक्का कर हर भारतीय के लिए गौरव का पल देने वाली 29 वर्षीय दो बच्चों की माँ ने सबका दिल जीत लिया।

    2014 में Incheon, South Korea में आयोजित Asian Games में गोल्ड मैडल जीत कर अपनी हौसलों के भूख को जारी रखी है।

     

    Mary Kom की चाहत

    उनकी चाहत है कि भारत में अधिक से अधिक Woman Boxer बने, जो भारत के लिए अच्छा तो है ही है और यह सेल्फ डिफेंस के लिए भी अच्छा है।

    इसके साथ वे नहीं चाहती है कि उनकी तरह नए खिलाड़ियों को संघर्ष करना पड़े। इसलिए उन्होने Mary Kom Boxing Academy बनायी है और इसके जरिये वह अगली मैरी कॉम बनाने का सपना देख रही हैं।

     

    Mary Kom को कैसे हुआ Karung Onkholer Kom से प्यार ?(Personal Life & Family)
    इस प्यार के पीछे एक साधारण Train Accident था। पिछले दफा वे ट्रेन से कहीं जा रही थी। जब वह नींद से उठी तो उसने अपना सामान, पर्स, पासपोर्ट नहीं पाया। किसी ने इन सब को चुरा लिया था।

    कुछ दिनों बाद ही उन्हें पहली International Competition में भाग लेना था।  पर पासपोर्ट ना होने के कारण वह विदेश नहीं जा सकती थी और दुबारा नया पासपोर्ट बनाने के लिए उनके पास पैसा नहीं था।

    उसी समय जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में उनकी मुलाक़ात Delhi University के Student Leader के ओनलर कॉम से हुई, जिन्होंने उन्हें दुबारा पासपोर्ट बनाने में मदद की। लगातार समान अंतराल पर दोनों के मिलने पर दोस्ती कब प्यार में बदल गया, पता ही नहीं चला। इस तरह यह लव स्टोरी पाँच सालों तक चली और उन्होंने 2005 में ओनलर कॉम से शादी कर ली।

    आज मैरी दो जुड़वा बच्चों सहित तीन बच्चों की माँ है।

     

    Boxer Mary Kom’s Social Activities

    वे बॉक्सिंग के अलावा Animal Rights की भी Supporter हैं और वे PETA India से भी जुड़ी हुई हैं। जानवरों के दर्द पर प्रकाश डालते हुए कहती है “सर्कस में सबसे ज्यादा जानवरों को टोरचर किया जाता हैं। एक माता के रूप में मैं महसूस कर सकती हूँ, उन मादा जानवरों के दुखों को, जब उन्हें अपने बच्चे से अलग करके सर्कस में परफ़ोर्मेंस के लिए टोरचर किया जाता है।”

     

    Mary Kom’s Awards
    1। Arjuna Award (2003)
    2। Rajiv Gandhi Khel Ratna Award (2009)
    3। Padma Shree (2010)
    4। Padma Bhushan (2013)

    No.2. में देखें मैरी कॉम की कुछ Unseen Pictures

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    1983 March 1 MaryKom Woman Fight
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