भारतीय साहित्य और बंगला साहित्य की आन-बान की शान और आदिवासियों की परम सेवक रही, Mahasweta Devi का गुरुवार दोपहर, 3 बजे, 28 जुलाई 2016 को आंतरिक संक्रमण के कारण निधन हो गया।
महाश्वेता भारत की वो बेटी रही, जो पहले अपनी साहित्य से अपने राष्ट्र और राज्य का मान बढाई और बाद में जन-मानस पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ खड़े होकर, अपनी इंसानियत का धर्म निभाई।
उनमें साहस और जोश का अथाह नहीं था, जिसके कारण 90 वर्ष के होने के बावजूद भी बंगाल-सरकार के जनता विरोधी नीति के खिलाफ आंदोलन चला रही थी।
इस बीच उनके अथाह जोश के आगे उनका शरीर लगातार साथ नहीं दे रहा था और अंत में उनका शरीर पंच-तंत्रों में विलीन हो गया।
आइये फ्रेंड, इस Hindi Biography द्वारा Mahasweta Devi की आदिवासी सेवा से पूर्ण जिंदगी को नजदीक से जानते है।
अनुक्रम
Mahasweta Devi Hindi Biograph (Wiki)
Parents
Mahasweta Devi का जन्म अविभाजित भारत के ढाका के साहित्यिक परिवार में हुआ था।
उनके पिता, मनीष घटक एक जाने- माने कवि और उपन्यासकार थे और उनकी माँ धारित्रि देवी भी एक लेखक और सोशल वर्कर थी।
Education
उनकी प्रारम्भिक शिक्षा ढाका में सम्पन्न हुई।
पर जब भारत को आजादी मिली तो वे पश्चिम बंगाल रहने को आ गई और यहाँ रबीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित विश्वभारती यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने लगी और यहाँ से इंग्लिश भाषा में बी.ए. ऑनर्स की डिग्री पूरी की।
और आगे की पढ़ाई जारी रखते हुए कलकत्ता यूनिवर्सिटी से इंगलिश भाषा में एम. ए. ऑनर्स की।
इस बीच वे कई साहित्यिक पत्रिकाओं के लिए लघु कथाएँ और कवितायें भी लिखा करती थी।
Marriage
पढ़ाई खत्म होने के बाद मशहूर नाटककार बीजों भट्टाचार्य, जो इंडियन पीपल थिएटर एसोसिएशन के सह-संस्थापक भी थे, से उनका विवाह हो गया।
1948 में उन्होंने नबरुन भट्टाचार्य को जन्म दी, जो भारत और बंगाल के सर्वश्रेष्ठ उपन्यासकारों में से एक हुए।
Literature Work
माता-पिता से विरासत में मिली लेखन स्किल से अब तक कवितायें लिखने वाली महाश्वेता ने 1956 में अपनी पहली कथा लिखी, जो 1857 से 58 के बीच घटित रानी लक्ष्मीबाई से संबंधित ऐतिहासिक घटनाक्रम पर आधारित था।
उन्होंने तमाम लेखकों से अलग एक ही जगह यानि कलकत्ता में ही बैठकर इसे पूरा नहीं की, बल्कि रानी लक्ष्मीबाई से संबंधित 1857 की क्रांति की गवाह रही, जबलपुर, पुणे, सागर, इंदौर, ललितपुर के जंगलों, झाँसी, ग्वालियर, काल्पी जैसे स्थानों पर जाकर उन घटनायों का पन्नों पर सजीव चित्रण की।
जिसके बारे में कहती थी,
इसको लिखने के बाद मैं समझ पाई कि मैं एक कथाकार बनूँगी।
अपनी लेखन जारी रखते हुए 1957 में नाती नाम से अपनी पहली उपन्यास लिखी, जो साहित्य का अनमोल रचना साबित हुआ।
बाद में आपसी तालमेल ना होने के कारण 1959 में उनके बीच तलाक हो गया।
Journalism & Social Work
अब Mahasweta Devi स्वछंद होकर 1964 में बीजोयगढ़ कॉलेज में पढ़ाने लगी। इस बीच वे जर्नलिस्ट और एक क्रिएटिव राइटर का भी कार्य करने लगी।
अपनी जर्नलिस्ट का काम बढाते हुए पश्चिम बंगाल के लोढ़स और शबर्स आदिवासी जाति के रहन-सहन पर एक स्टडी तैयार की, जिसके लिए उन्हें काफी वाहवाहियाँ मिले।
इस स्टडी के बाद उनका मन देश के सबसे गरीब लोगों में रम गया। अब वे पूरे भारत में घूम-घूमकर आदिवाशियों के हाल का जायजा लेती और उनकी सहायता भी करती थी।
इसी क्रम में वो बिहार, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे बहुल आदिवासी राज्यों में भी आदिवासियों के अधिकारों के संरक्षण और हक के लिए पूरे ज़ोर से आवाज़ उठाया करती थी।
इस कार्य का उनके बांग्ला रचना पर बहुत प्रभाव मिलता है। वे जमींदारों और हालिया सरकार द्वारा आदिवासियों पर किए जाने वाले जुल्मों का काफी विस्तारपूर्वक वर्णन कर चुकी है।
उनका मानना था कि बड़े लोग नहीं, बल्कि समाज के साधारण से लोग ही अपने कामों और साहस से इतिहास बनाते है। इसे वे अपनी लेखन के लिए प्रेरणाश्रोत के रूप में लेती है। वे खुले शब्दों में कहती थी,
मैं हमेशा से विश्वाश करती हूँ कि रियल हिस्टरी साधारण लोगो के द्वारा ही बनाया जाता है। मैंने देखा है, लोग कितने भी शोषित किए जाते है और उनपर अत्याचार किया जाता है। पर वे कभी हार नहीं मानते है। यही मेरे लेखन के लिए प्रेरणाश्रोत का काम करता है।
Writing Work
Mahasweta Devi की प्रमुख रचना रही, धौली, Dust on the Road, Our Non Veg Cow, बशाई तुडु, रुदाली, Till Death Do Us Part, Old Women, डाकते कहिनी।
Awards
उनके इस लाजवाब कार्य के लिए 1979 में साहित्य एकेडमी अवार्ड, 1986 में पद्मा श्री, 1996 में जनपथ अवार्ड, 1997 में रमन मैगसेस अवार्ड, 1999 में होनोरिस कौसा, 2006 में पद्मा विभूषण, 2010 में यशवंत राव राष्ट्रीय अवार्ड, 2011 में बंगाबिभूषन जैसे अवार्ड उनके अमूल्य साहित्यिक योगदान के लिए दिया गया और 2012 में उन्हें हॉल ऑफ फेम लाइफटाइम अचिवमेंट साहित्यब्रह्मा में शामिल किया गया।
At Present
वर्तमान में 90 साल के होने के बावजूद सोशल एक्टिविटीज में उनकी सक्रियता कम ना हुई। जिसके कारण वे हाल में बंगाल सरकार के इंडस्ट्री पॉलिसी के खिलाफ जन आंदोलन छेड़ रखी थी।
Death (Death Reason)
पर इतनी व्यवस्था और ढलती उम्र के कारण 22 जून 2016 को गंभीर से रूप से बीमार हो गई, जिसके चलते उन्हें कलकत्ता के प्राइवेट हॉस्पिटल में भर्ती होना पड़ा।
उन्हें आंतरिक घाव के सड़न के कारण आंतरिक संक्रमण हुआ था। जिसके कारण 28 जुलाई 2016 को 3 बजे वे स्वर्ग सिधार गई।
Quick Fact
Bio Data
Date of birth – 14 January 1926
Age – 90 Years
Birth of Place – Dhaka, Bangladesh
Death of date – 28 July 2016, Kolkata.
Family
Father – Manish Ghatak
Mother – Dharitri Devi
Uncle– Ritwik Ghatak
Husband – Bijon Bhattacharya
Son – Nabarun Bhattacharya
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