हम अलग अलग है, पर हमारे मन में उठने वाल एक प्रश्न समान होता है। वो है “आखिर हम कितना संघर्ष करे कि सफलता मिल जाए?”… आज मैं आपके साथ मेवाड़ के लाल, राजस्थान के सपूत और Bharat Ka Veer Putra Maharana Pratap की कहानी शेयर कर रहा हूँ, जिसे पढ़कर आप जानेंगे कि आप कितना संघर्ष कर सकते है? इसके अलावा आप जानेंगे मातृभूमि से असीम और अमर प्रेम को। तो स्टार्ट करते हैं Maharana Pratap की Hindi Biography को….
अनुक्रम
Maharana Pratap History in Hindi (Wiki)
Maharana Pratap का Childhood
वीरों के वीर महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को उदयपुर के कुंभलगढ़ किले में हुआ। वे मेवाड़ के राजा उदय सिंह द्वितीय, जो उदयपुर के संस्थापक भी है और ज्येष्ठ रानी जैवन्ताबाई के पुत्र थे। वे राजपूतों के सिसोदिया वंश से तालुक रखते थे।
बचपन से ही उन्हें युद्ध करना, तलवार चलाना, भाला फेंकना, बंद आँखों से तीर चलाना पसंद था।
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कहते है पूत के पाँव पालने में नजर आ जाता है। 16 साल की छोटी उम्र में ही कई बार चंगेज़ खाँ के सैनिकों को धूल चटाकर, इस बात को सार्थक किया। उन्हें बचपन से ही दिलीख्वाहिश थी कि वे मेवाड़ के दुश्मनों के दाँत खट्टे करे। इस कारण वे हर युद्ध कौशल को सीखते थे। यानि वे गुरु से पहले ही एक ऐसा योद्धा बन चुके थे, जो प्रत्यक्ष तौर ना सही पर अप्रत्यक्ष तौर पर मेवाड़ पर आए रक्षा संकट से निपटने में सहायता करते थे। गुरु रघुवेंद्र ने सिर्फ शिष्य को अपने शक्तियों में तालमेल और धैर्य का गुण सिखाया, जो उनके मृत्यु तक साथ रही।
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Maharana Pratap बनाम Akbar
1567 में मुगल शासक अकबर ने चारों से चितौड़गढ़ को घेर लिया, पर जब तक अकबर की सेना उदय सिंह और उनके परिवार को नुकसान पहुंचाते, वे वहाँ से भाग चुके थे। पर 27 वर्षीय कुँवर प्रताप दुश्मनों का सामना करना चाहते थे, पर परिवारवालों ने उन्हें समझा-बुझाकर अपने साथ अरावली पर्वत के तलहटी में रहने आ गए। जहां उदय सिंह ने बाकी मेवाड़ राज्य को चलाने के लिए टेम्पररी राजधानी बनाया।
1572 में उदय सिंह स्वर्ग सिधार गए। जिसके कारण परंपरा के अनुसार मेवाड़ का अगला राजा प्रजा प्रिय कुँवर प्रताप को बनना चाहिए था। पर वे अपने पिता के इच्छा को सम्मान देते हुए अपने छोटे भाई जगमल को मेवाड़ का राजा बनाया।
कुँवर प्रताप का राजा न बनने का कारण था कि उनके स्वर्गवासी पिता जी मरने से पहले वे अपनी छोटी रानी भटियानी को अधिक पसंद करते थे। रानी चाहती थी कि उनका पुत्र ही मेवाड़ का अगला राजा बने और राणा उदय सिंह ने भी इस बात पर अपनी इच्छा की मोहर लगा दी।
मेवाड़ के नए राजा के साथ मेवाड़ का शासन चलने लगा। पर जगमल लगातार शासन करने में अयोग्य साबित हो रहा था, क्योंकि वह अपने मंत्रियों की बात नहीं मानता था। इससे नाखुश चंदावत राजपूतों ने उसे राज गद्दी छोड़ने को कहा। पर वह छोड़ना नहीं चाहता था, पर उसे भारी दबाव में राज गद्दी छोड़ना पड़ा।
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Maharana Pratap का राजतिलक
उसी वर्ष गोगुंदा में कुँवर प्रताप का राजतिलक किया गया। वे सिसोदिया वंशीय मेवाड़ के 54 वें शासक बने। पिता की मौत ने पहले ही उन्हें काफी दुखी कर चुका था और वही उनके भाई जगमल राज-पाट दुबारा लेने की मंशा से अकबर से जा मिला। अकबर भी आधे मेवाड़ पर अधिकार कर चुका था।
अकबर ने महारणा प्रताप के पास कई बार दूतों को भेजकर संधि पत्र पर साइन कराने की कोशिश की। पर यह संधि पत्र मेवाड़ की गुलामी का पत्र था, जो उन्हें नामंज़ूर था।
मातृभूमि की आजादी के लिए संघर्ष
इस स्थिति में अपनी सेना को मजबूत करने के लिए राणा प्रताप ने अरावली के भीलों को अपनी सेना में भर्ती किया, जो पर्वतीय युद्ध में माहिर थे। अकबर से लड़ने की रणनीति के तहत महाराणा ने अपनी राजधानी को अरावली से कुंभलगढ़ शिफ्ट कर लिया, जहां उनका जन्म हुआ था। वे यहाँ खुद भीलों की पर्वतीय युद्ध शैली को सीखते और बाकी सेना को भी सीखाते। यही पर उन्होंने शपथ ली “जब तक मैं अपने मातृभूमि को मुगलों के चंगुल से नहीं छूटा लेता हूँ, तब तक मैं सोने-चाँदी के बर्तनों में भोजन ग्रहण नहीं करूंगा, ना ही कोमल बिस्तर पर सोऊंगा, ना ही महल में निवास करूंगा और ना ही दाढ़ी बनाऊँगा”
हल्दी घाटी का युद्ध
1576 में इतिहास का वह दिन (18 जून) आया, जब मात्र 4 घंटे चली युद्ध में रणभूमि पीले रंग में रंग गई। इस युद्ध में मुगल सरदार राजा मान सिंह के 80,000 सेना के सामने महारणा प्रताप के 20,000 सेना थी। पर राजपूत सेना मुगल सेना को अच्छी टक्कर दे रही थी। पर राणा युद्ध करते करते दुश्मनों से घिर गए, जिसे झाला मान सिंह ने अपने प्राणों की आहुती देकर बचाया और उन्हें रणभूमि से भाग जाने को कहा। इसी युद्ध में उनका स्वामिभक्त घोडा चेतक नाला पार करते हुए भी शहीद हो चुका था। फिर उनके भाई शक्ति सिंह ने अपना घोडा देकर उनकी जान बचाया।
भामाशाह की भविष्य दान
इस युद्ध के बाद राणा प्रताप के पास मातृभूमि की आजादी की लड़ाई को आगे जारी रखने के लिए पर्याप्त धन नहीं था। ऐसे में इतिहास में प्रसिद्ध दानवीर और उनके मंत्री भामाशाह आगे आए, जिन्होंने अपनी जीवन का धन-दौलत अपनी मातृभूमि को पाने के लिए राणा प्रताप को दान कर दिया, जो 12 सालों के लिए प्रयाप्त था।
संघर्ष ने चमकाया माँ की आजादी के सुरज को
इस तरह अकबर और राणा प्रताप के बीच युद्धों का दौर चला, जो राणा प्रताप की असीम संघर्ष के बाद 1585 में मेवाड़ की आजादी के उगते सूरज के साथ रुकी। उस दिन से आजाद मेवाड़ राज्य का उदय हुआ। इसके बाद प्रजाप्रिय राणा प्रताप जनता के सुख-सुविधायों में लग गए।
Maharana Pratap का Death
19 जनवरी 1597 में शिकार खेलते हुए अधिक घायल हो जाने के कारण मेवाड़ ने अपने हीरे जैसे पुत्र महारणा प्रताप को नम आँखों से अंतिम विदाई दी।
महाराना प्रताप का अपनी मातृभूमि से वह बेपनाह प्रेम ही था कि जिसके कारण उनके मृत्यु पर उनके दुश्मन अकबर को भी दु:ख हुआ।
पर मरते-मरते महाराणा प्रताप ने हमें बता दिया कि जीवन ऐसे जियों कि आपकी मौत पर आपका दुश्मन भी रोये।
Quick Fact
Date of Birth : May 9, 1540
Birth Place : कुंभलगढ़
Wife : लाखाबाई, फूल बाई राठोर, महारानी अजबदे पंवर, रत्नावतीबाई परमार, खिचर आशा बाई, शाहमतिबाई हाड़ा, आलमदेबाई चौहान, चम्पाबाई झाटी, सोलंखीनीपुर बाई, जसोबाई चौहान, अमर बाई राठोर
Sons : अमर सिंह 1, शेखा सिंह, कुँवर दुर्जन सिंह, कुँवर कल्याण दास, चंदा सिंह, कुँवर माल सिंह, कुँवर गोपाल, कुँवर संवल दास सिंह, कुँवर पुरण मल, कुँवर हाथी सिंह, कुँवर जसवंत सिंह, कुँवर राम सिंह, कुँवर राईभना सिंह, भगवान दास, कुँवर नाथ सिंह, कुँवर कचरा सिंह, साहस मल
लेखक की तरफ से
महाराणा की अपनी मातृभूमि की प्रति अमर प्रेम के लिए मैं कुछ लाइनें डेडिकेट करना चाहता हूँ …..
जब जब मैं जन्म लूँ ए माँ
तब तब तेरे दर्द को खींच लूँ ए माँ
जब जब तू रोये ए माँ
तब तब हम सारी सुख छोड़े ए माँ
जब जब तू हँसे ए माँ
तब तब हम उस पल को रोक ले ए माँ
सौ बार नमन, महाराणा आपको !!
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