क्या आपके मन में जीवन को लेकर बहुत से सवाल आते है? अमूमन लोग आपके सवालों के जवाब नहीं दे पाते है?
तो गीता पढ़कर देखिये, वहाँ आपको जीवन के सभी आयामों जैसे सफलता, दोस्त, पत्नी, दुश्मन, क्रोध, दया आदि पर भगवान श्री कृष्ण का देव ज्ञान मिलेगा। बेशक जीवन को देखने का आपको नया नजरिया मिलेगा और अपने प्रश्नों का जवाब भी मिल जाएगा।
हमने already आपके काम को आसान करने के मकसद से बहुत महत्वपूर्ण Geeta Shok का संग्रहण किया है, जिसमें आपको जो अच्छा लगे, उसे मित्रों के Whatsapp & Facebook Timeline पर शेयर कर सकते है-
अनुक्रम
Geeta Shlok in Sanskrit
#सुख दुःखे समे कृत्वा लाभा लाभों जयाजयौ
ततो युध्याय युज्यस्व नैव पापमवापस्यसि!!!
(जय पराजय लाभ हानि और सुख दुःख को समान करके फिर युद्ध में लग जा इस प्रकार युद्ध करने से
तू पाप को प्राप्त नहीं होगा!!!)
Geeta Shlok on Karma in Sanskrit
#सन्नायसस्तु महाबाहों दुःखमाप्तूमयोगत
योगयुक्तों मुनिब्रह्म नचिरेणधीगच्छति!!!
(भक्ति में लगे बिना केवल समस्त कर्मो का परित्याग करने से कोई सुखी नहीं बन सकता, परन्तु भक्ति में लगा हुआ विचारवान व्यक्ति शीघ्र ही परमेश्वर को प्राप्त कर लेता हैं!!!)
#भूमें: गरीयसी माता, स्वगार्त उच्चतर: पिता
जननी जन्मभूमिश्व, स्वगार्त अपि गरियसी!!!
(भूमि से श्रेष्ठ माता हैं स्वर्ग से ऊँचे पिता हैं माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ हैं!!!)
#जेय: स नित्यसन्यासी यो न दृष्टि न कांडग् क्षति
निद्रान्दो हि महाबाहो सुख बंधात्प्रमुच्यते!!!
(जो पुरुष न तो कर्मफलों से घृणा करता हैं और न कर्म फल की इच्छा करता हैं, वह नित्य सन्यासी जाना जाता हैं महाबाहु अर्जुन! मनुष्य समस्त द्वान्दो से रहित हैं होकर भावबंधन को पार कर पूर्णतया मुक्त हो जाता हैं!!!)
#श्रेयान् स्वधर्मो विगुण: परधर्मात स्वनुष्टितात्
स्वधर्म निधन श्रेय: परधर्मो भयावह:!!!
(अपने नित्यकर्मों को दोषपूर्ण ढंग से सम्पन्न करना भी अन्य के कर्मो को फलीभूत करने से श्रेष्कर हैं, स्व-कर्मो को करते हुए मरना पराये कर्मो में प्रवर्त होने की अपेक्षा श्रेष्ठतर हैं क्योंकि अन्य किसी के मार्ग का अनुसरण भयावह होता हैं!!!)
#येन बद्धो बलि राजा दानवेन्द्रो महाबल:
तेन त्वाम् अभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल!!!
(दानवों के महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे उसी तरह से यह रक्षा सूत्र तुम्हें बांधती हूँ! हे रक्षा तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना!!!)
Bhagwat Geeta Quotes in Sanskrit
#कर्मणये वाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन
मां कर्मफलहेतुर्भु: मातें सद्गगोस्त्वकर्मणि!!!
(आपको सिर्फ कर्म करने का अधिकार हैं, लेकिन कर्म का फल देने का अधिकार भगवान का हैं, कर्म फल की इच्छा से कभी काम मत करो और न ही आपकी कर्म न करने की प्रवृत्ति होनी चाहिये!!!)
#सन्यास: कर्मयोगः नि: श्रेयसकरावुभौ तयोस्तु
कर्मसन्यासात्कर्मयोगों विशिष्यते!!!
(मुक्ति के लिए तो कर्म का परित्याग तथा भक्तिमय कर्म
दोनों ही उत्तम हैं किन्तु इन दोनों में से कर्म के परित्याग से भक्तियुक्त कर्म श्रेष्ठ हैं!!!)
#चिन्तया जायते दुःख नान्यथेहेति निश्चयी
तया हीन: सुखी शान्त: सर्वत्र गलितस्पृहः!!!
(चिंता से ही दुःख उत्पन्न होता हैं, किसी अन्य कारण से नहीं। ऐसा निश्चित रूप से जानने वाला चिंता से रहित होकर सुखी, शांत और सभी इच्छाओं से मुक्त हो जाता हैं!!!)
#योगयुक्तो विशुद्धआत्मा विजितात्मा जितेंद्रिय:
सर्वभुआत्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते!!!
(जो भक्तिभाव से कर्म करता हैं, जो विशुद्ध आत्मा हैं और अपने मन तथा इंद्रियों को वश में रखता हैं। वह सभी को प्रिय होता हैं और सभी लोग उसे प्रिय होते हैं
ऐसा व्यक्ति कर्म करता हुआ भी कर्म नहीं बंधता!!!)
#न जायते मिरयते वा कदाचिनाय भूत्वा भविता वा
न भूय: अजो नित्य: शाश्वतोअय पुराणों न हन्यते हन्यमाने शरीरे!!!
(आत्मा किसी काल में भी न जन्मता हैं और न मरता हैं
न यह एक बार होकर फिर अभावरूप होने वाला हैं आत्मा अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातत्व हैं शरीर के नाश होने पर भी इसका नाश नहीं होता)
Geeta Shlok in Sanskrit with Meaining in Hindi
#मानापमानयोसतुल्यस्तुल्यो मित्रारिपक्षयो: सर्वारम्भपरित्यागी गुणातीत: सा उच्यते!!!
(जो मान और अपमान में सम हैं मित्र तथा वैरी में भी सम हैं एंव सम्पूर्ण कर्मो में कर्त्तापन के अभिमान से रहित हैं वह पुरुष गुणातीत कहा जाता है!!!)
#यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिभर्वती भारत:
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजामयह्म!!!
(हे भारत! जब जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती हैं
तब तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ अर्थात साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ!!!)
#जातस्य हि ध्रुवो मृत्युधुर्वे जन्म मृतस्य च तस्माद परिहार्यथै न त्व शोचितिमहर्षि!!!
(जन्मने वाले कि मृत्यु निशिचित हैं और मरने वाले का जन्म निश्चित हैं इसलिए जो अटल हैं अपरिहार्य हैं उसके विषय में तुमको शौक नहीं करना चाहिये!!!)
#सर्वकमाणि मनसा संयसन्यासते सुख वशी नवद्वारे पूरे देही नेव कुर्वन्न कार्यंन्!!!
(जब देहधारी जीवात्मा अपनी प्रकृति को वश में कर लेता हैं और मन से समस्त कर्मो का परित्याग कर देता हैं तब वह नो द्वार वाले नगर में बिना कुछ किये कराए सुखपूर्वक रहता है!!!)
#यावदेतानिंन्रिक्षेअहं योद्ध्रुकामानवस्थितांन कैमर्या
सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुदयमे!!!
#नैन छिद्रन्ति शस्त्राणि नैन दहति पावक:
न चैन क्लेदयनत्यपो न शौष्यति मारुत!!!
#यद्चरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन: स
यत्प्रमाणं कुरुते लोक स्तदनुवर्तते!!!
#प्रवृति च निर्वर्ती च कार्योंकार्य भयाभये
बंध मोक्ष च या वेत्ति बुद्धि: सा पार्थ सात्विकी!!!
#पिताहमस्य जगतो माता धाता पितामह:
वेध पवित्रमोकार ऋकसाम यजुर्वे च!!!
#तेषा ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्तिविशिष्यते
प्रियो हि ज्ञानिनोअत्यर्थमहं स च मम प्रिय!!!
#न में पार्थासित कर्तव्य त्रिषु लोकेषु किंचन
नानवाप्तमवाप्तव्य वर्त एव च कर्मणि!!!
#स्वय मेवात्मनात्मान वेत्थ त्व पुरुषोत्तम
भूतभावन भूतेश देवदेव जगत्पते!!!
#मनमाना भव मद्भक्तो मद्याजी मा नमस्कुरु
मामेवैष्यसि सत्य तै प्रतिजाने पिर्योअसि में!!!
#मन: प्रसाद: सौम्यत्व मौनमातमविनिगृह भावशशुद्धिरितयेतत्तपो मानसमुच्यते!!!